2 Dec 2010

वो चालीस साल... भाग एक Part-1 Attempted Short story

"चालीस के हो गए हो अभी तक तुम्हारी वही आदते हैं, कब सुधरोगे ?" वीणा ने झल्ला के कहा| सुनील कुछ कह ना सक बस  मुस्कुराता रहा | वो आज भी उसी सिद्दत से वीणा को चाहता था जैसा कि बीस वर्ष पहले|

कालेज का वो पहला दिन आज भी तारो ताज़ा हो रहे थे, सुनील के जेहन मे| मोटे फ्रेम का चस्मा अमिताभ कि हाल कि पिक्चर का नया फैशन उभर के आया था|
  अरे क्या बोलना यार घर का तमाशा फिल्मो मे उठा लाये अमिताभ तो| देखि है तुमने जया भाधुरी कि कोई पिक्चर ... जब से शादी हुई है ये शायद दोनों कि पहली पिक्चर है ... कहाँ जया भी इस लम्बू के चक्कर मे फस गयी...  सुनील  सुनील! अरे सुनो भाई कहाँ खो गए ... सुनील को कहाँ किसी का ध्यान , वो तो एक टक मेन गेट पे निगाहें लगाए बैठा था | और सामने से अपने  बालों को सवारते हुए नीली सूट मे  एक लड़की चली आ रही थी| " भाई साहब ये तो गए काम से हा हा हा..."  सभी ने सुनील कि ओर देख चुटकी ली | सुनील बेटा वकील कि बेटी है, जरा संभल के चलना नहीं तो खड़े खड़े तुम्हारी वकालत हो जायेगी |
    वो मुशकुराहट, वो सादगी, वो अदा एक ही नज़र मे उसे दीवाना बना बैठी थी... वीणा वीणा S S S   चलो भी,  क्लास के
लिए देर हो जायेगी आज पहली क्लास तो टाइम पे कर लेते हैं.... हाँ आई...

     अरे बड़े अजीब आदमी हो... मैंने कहा आते वक़्त सब्जियां लेते आना... सुनील को मानो झटका लगा हो... किसी ने सुन्दर से सपने को वजूद से हिला दिया हो... उसने हामी मे सीर हिलाए और साइकिल निकालने लगा | वीणा ने मानो फिर से याद दिलाते हुए सब्जी का झोला पकड़ा दिया...
    कैसे किसी मे इतना परिवर्तन आ सकता है, विश्वास नहीं होता ये वही वीणा है... जिसके एक शब्द सुनने को मे घंटो कैंटीन मे बैठा रहता था...कुछ नहीं  बस उसकी प्यारी  प्यारी सी बातिएँ सुनता| और आज का दिन है... २० वर्षों मे सब कुछ कैसे बदल जाता है ..... सुनील बेटा कैसे हो ! कहाँ रहते हो आज कल दिखाई ही नहीं देते.... नहीं काका  आज कल दफ्तर मे कुछ ज्यादा काम रहता है सो निकलते निकलते रात हो जाती है... अच्छा कोई बात नहीं... काकी ने याद किया था तुम्हे  कह रही थी बहु को भी लेते आना... काफी दिन हो गए दोनों को देखे हुए... जी जरूर  काका, दफ्तर से जैसे ही मौका मिलता है मै फ़ौरन ही आने कि कोशिश करूँगा  ... प्रणाम काका... जीते रहो बेटा...
   भैया... एक स्पेशल चाय और एक किंग्स देना... माचिस देना भैया  ....  अखबार वालो को भी कोई कहबर नहीं मिलती आजकल... जब देखो... अमिताभ और इलेक्शन अमिताभ और इलेक्शन... भाई और कुछो नहीं हो रहा क्या देश मे जैसे कि एक अमिताभवे है इलेक्शन मे खड़ा होए वाला...देखियो हम न कहते है... एक्को भोटो मिली तो हम मुछ्वा मुड़ लेई हमार...अरे भाई जीतियो सके है .. पता है न राजीव गाँधी का दोस्त्वा है भाई ... जीतवा तो देगा ही...
तभी  घंटा घर कि घडी में ९ बजे का घंटा बजा ...  सुनील जल्दी जल्दी अपनी चाय ख़तम कर निकलने लगा...

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